1. This "Jeev" even if it receives the highest post or things in this world, then too its hunger will not be satiated till it does not attain the Eternal, its very own Lord, because only God is such, through whom all fulfillment is possible. Besides God, everyone else is incomplete and imperfect.
इस जीव को संसार के किसी भी उच्चे-से- उच्चे पद या पदार्थ की प्राप्ति क्यों न हो जाए, इसकी भूक तब तक नहीं मिटती, जब तक यह अपने परम आत्मीय भगवान् को प्राप्त नहीं कर लेता, क्योंकि भगवान् ही ऐसे हैं जिनसे सब तरह की पूर्ती हो सकती है | उनके सिवा सभी अपूर्ण है | (Jeevan ka Kartavya)
2. जिन मन, बुद्धि, इन्द्रियोंको आप वश में नहीं कर सकते हो, अपनेमें एक कमजोरी का अनुभव होता है, वह कमजोरी नहीं रहेगी। आपको आश्चर्य आये, ऐसा बल आ जयगा। काम को जीतने की, लोभ को जीतने की, मोह को जीतने की, मात्सर्य-दोष दूर करनेकी ताकत स्वत: आ जायगी। परन्तु ताकत लेने के लिये स्थित नहीं होना है। इसका विचार ही नहीं करना है कि हमें ताकल लेनी है। केवल चितशक्तिमें, अपने स्वरुपमें स्थित होना है कि मेरे में कोई विकार नहीं है। दिन में दस बार, पन्द्रह बार, बीस बार, पचास बार, सौ बार, दो-दो, तीन-तीन सेकेण्डके लिये भी इसमें स्थित हो जाओ कि हमारे में दोष नहीं है। अपने स्वरुपको सँभाल लो। यह तत्काल सिद्धि देनेवाला योग है। (‘भगवत्प्राप्ति की सुगमता’ पृष्ठ-७ पुस्तक से)
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